बिहार में महिलाओं का नया सवेरा
बिहार की नारी शक्ति:- क्या आपने कभी सोचा कि एक ऐसा राज्य, जो कभी चुनौतियों से जूझ रहा था, आज women’s empowerment में मिसाल कैसे बन गया? जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार की, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले 19 सालों में ऐसी नीतियां लागू कीं, जिन्होंने महिलाओं की जिंदगी को नई दिशा दी। चाहे वो education हो, security हो, या employment का मौका—बिहार ने हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। आज हम इस सफर को करीब से देखेंगे, जिसमें नीतीश कुमार की दूरदर्शिता और बिहार की नारी शक्ति की ताकत एक साथ नजर आएगी। तो चलिए, शुरू करते हैं इस प्रेरणादायक कहानी को!

क्यों जरूरी था बिहार में Women’s Empowerment?
बिहार का इतिहास बताता है कि यहाँ महिलाओं की राह आसान नहीं थी। कम साक्षरता दर, नौकरियों की कमी और पुरानी सोच ने उन्हें पीछे रखा था। 2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार में महिलाओं की साक्षरता दर सिर्फ 51.5% थी—राष्ट्रीय औसत से काफी कम। लेकिन 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद हालात बदलने शुरू हुए। उन्होंने समझा कि अगर बिहार को तरक्की करनी है, तो महिलाओं को education, security और employment के मौके देने होंगे। उनका मानना था कि महिलाएं सिर्फ घर नहीं, समाज की भी रीढ़ हैं। और यहीं से शुरू हुआ एक नया अध्याय।
Welfare Schemes ने बदली तस्वीर
बिहार ने कई ऐसी योजनाएं शुरू कीं, जिन्होंने महिलाओं को नई पहचान दी। पहला बड़ा कदम था 2006 में पंचायती राज में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण। इस फैसले ने हजारों महिलाओं को सरपंच और मुखिया बनने का मौका दिया। आज बिहार में 1.3 लाख से ज्यादा महिलाएं पंचायतों में नेतृत्व कर रही हैं। फिर 2016 में सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण आया, जिसने employment के नए दरवाजे खोले। आज बिहार पुलिस में 25% से ज्यादा महिलाएं हैं—यह राष्ट्रीय औसत से दोगुना है।
Education के लिए मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना ने कमाल किया। 2006 में शुरू हुई इस योजना से 27 लाख से ज्यादा लड़कियों को साइकिल मिली, जिसने उनकी पढ़ाई को आसान बनाया। स्कूल छोड़ने की दर घटी, और माता-पिता ने बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि गर्व समझना शुरू किया। इसके अलावा, जीविका कार्यक्रम ने महिलाओं को आर्थिक ताकत दी। 8.15 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूहों के जरिए 88 लाख परिवार जुड़े, और महिलाएं अब छोटे-छोटे व्यवसाय चला रही हैं। ये welfare schemes बिहार की महिलाओं के लिए वरदान साबित हुए हैं।
असली बदलाव की कहानियां
नीतियां तो बनती हैं, लेकिन असली सवाल है—जमीन पर क्या बदला? मधुबानी की रानी देवी की कहानी लें। पंचायत आरक्षण के बाद वो मुखिया बनीं। बिना पढ़ाई के शुरू में डर था, लेकिन आज वो अपने गांव में सड़कें, पानी और education के लिए लड़ रही हैं। ऐसे ही जीविका की महिलाएं छोटे-छोटे सपनों को सच कर रही हैं—कोई मुर्गी पालन कर रही है, तो कोई सिलाई का काम। ये बदलाव छोटे लगते हैं, लेकिन इनसे बिहार का भविष्य बदल रहा है।
नारी शक्ति सम्मेलन 2025
8 मार्च 2025 को पटना में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जदयू महिला प्रकोष्ठ ने ‘नारी शक्ति सम्मेलन’ आयोजित किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “19 सालों में हमने education, security और employment के क्षेत्र में कई welfare schemes शुरू किए, जिससे बिहार ने women’s empowerment में मिसाल कायम की। 2005 से पहले की सरकारों ने महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन आज बड़ी संख्या में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं।” बड़ी तादाद में महिलाओं की मौजूदगी देखकर वो खुश हुए। जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार की प्रतिबद्धता का दूसरा उदाहरण देश में नहीं मिलता। डॉ. भारती मेहता ने जोड़ा, “हमारा बिहार gender equality का अगुआ बन गया है।” यह सम्मेलन बिहार के मिशन का जीता-जागता सबूत था।
रास्ता अभी पूरा नहीं
सब कुछ आसान नहीं रहा। कुछ पंचायतों में महिलाओं के नाम पर उनके पति काम करते हैं। दहेज हिंसा और बाल विवाह जैसी समस्याएं अभी बाकी हैं। 2021 में NCRB ने बिहार में 1,045 दहेज हत्याओं की रिपोर्ट दी। लेकिन सरकार ने कदम उठाए—2016 का शराबबंदी कानून महिलाओं की मांग पर आया, ताकि घरेलू हिंसा कम हो। साथ ही, वन स्टॉप सेंटर्स ने 4,400 से ज्यादा महिलाओं की मदद की। ये दिखाता है कि बिहार चुनौतियों से लड़ रहा है।
निष्कर्ष: बिहार का संदेश और भविष्य
तो क्या बिहार ने सच में women’s empowerment में मिसाल कायम की? जवाब है—हां। नीतीश कुमार की अगुवाई में साइकिल से लेकर सत्ता तक, पुलिस की वर्दी से लेकर पंचायत की कुर्सी तक, महिलाओं ने अपनी जगह बनाई। यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं—यह सम्मान और सपनों की कहानी है। बिहार ने साबित किया कि gender equality हर जगह मुमकिन है। लेकिन अभी और काम बाकी है—सोच बदलनी है, सिस्टम मजबूत करना है। बिहार का यह सफर न सिर्फ प्रेरणा है, बल्कि एक चुनौती भी—कि बदलाव की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है।